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सीख / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
पढ़ रे नुनुआ आ ई ऊ
झाल लगो तेॅ करियें सू।
लागै चैत नगीचे छै
मालपुओॅ के ही खुशबू!
कन्हौं आग दिखावै नै
धुआँ उठै छै धू-धू-धू।
बिन मूँ धोलैं खैलैं तोंय
ई आदत पर थू-थू-थू।
घर से बाहर नै जइयें
वहाँ चलै छै की रं लू।