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सीख / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
वर्षा आई, बंदर भीगा,
लगा काँपने थर थर थर।
बयां घोंसले से यूं बोली
भैया क्यों न बनाते घर॥
गुस्से में भर बंदर कूदा,
पास घोंसले के आया।
तार तार कर दिया घोंसला
बड़े जोर से चिल्लाया॥
बेघर की हो भीगी चिड़िया,
दे बन्दर को सीख भली।
मूरख को भी क्या समझाना,
यही सोच लाचार चली॥
सीख उसे दो जो समझे भी,
जिसे जरूरत हो भरपूर।
नादानों से दूरी अच्छी,
सदा कहावत है मशहूर॥