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सीता जे रहल गरभ सै, राम बन भेजि देलत हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में राम द्वारा गर्भवती सीता के निर्वासन के बाद जंगल में सीता के विलाप और पुत्रोत्पत्ति का वर्णन हुआ है। सीता के विलाप पर वनदेवी उनहें सांत्वना तथा प्रसव-काल में सेवा-शुश्रूषा का आश्वासन देती है। पुत्रोत्पत्ति के बाद सीता हजाम के द्वारा अयोध्या संदेश भेजती हैं। साथ ही, हजाम को हिदायत करती हैं कि सबको खबर देना, लेकिन किसी भी तरह राम को इसकी सूचना न मिलने पाये। हजाम अयोध्या पहुँचता है। उसे सबसे पहले राम से ही भेंट होती है। राम हजाम की विदाई के समय सीता के नाम से पत्र लिखकर देते हैं। सीता उस पत्र को पाकर मुस्कराती तो हैं, लेकिन राम को भला-बुरा भी कहती है।
परित्यक्ता स्त्री का अपने निष्ठुर पति के प्रति ऐसा भाव उचित ही है।

सीता जे रहल गरभ सेॅ, राम बन भेजि देलत हे।
ललना रे, बन ही में सीता करे बिलाप, केओ<ref>कोई</ref> नहीं आगे पीछे हे॥1॥
बन से जे निकलल बनतपसी<ref>दूसरे गीतों में ‘बनतपसी’ की जगह ‘बनसपती’ का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ ‘वनदेवी’ है। ‘बनतपसी से ‘बनसपती’ का प्रयोग ही अधिक उपयुक्त लगता है। कालिदास ने शकुंतला की बिदाई के समय ‘बनस्पतियों’ द्वारा वस्त्र और अलंकार देने का वर्णन किया है। तथा भवभूति ने बनवासिनी सीता की सहचरियों में बनदेवी और मुरला नाम के दो पात्रियों का चित्रण किया है।</ref> औरो बनतपसी हे।
ललना रे, हमे सीता के आगु पाछु होयब, हमही होयब दगरिन<ref>चमाइन; डगरिन</ref> हे।
आधी रात बीतल पहर रात, औरो दोसर रात हे।
ललनारे, होयते भोर बबुआ जनम भेल, घर घर अनंद भेल हे॥3॥
घर पछुअरबा में बाभन बसु, औरो बाभन बसु हे।
ललना रे, जलदी से दिन गुनि देहो<ref>गणना कर दो</ref>, बधैया पहुँचायब हे॥4॥
घर पछुअरबा में हजमा बसु, औरो से हजमा बसु हे।
ललना रे, जलदी से चिठिया पहुँचाबहो, बबुआ जनम भेल हे॥5॥
पहिला बधैया राजा दसरथ, दोसर कोसिलेआ रानी हे।
ललना रे, तेसर बधैया देवर लछुमन राम नहीं जानथि हे॥6॥
घर के पछिम एक पोखर, औरो एक पोखर हे।
ललना रे, पाटे<ref>पोखरे के घाट पर; कगार पर</ref> चढ़ी राम दतुअन करै, हजमा मुख डीठ परल हे॥7॥
कौने नगर के तहुँ हजमा, कहाँ रे कैले<ref>कहाँ को</ref> जाय छिकें रे।
ललना रे, किनका के भेलै नंदलाल<ref>लोकगीतों में प्रायः देखा जाता है कि ‘राम’ के प्रसंग में ‘नंदलाल’ और कृष्ण के प्रसंग में राम तथा कोसिला रानी आदि चित्रित होते हैं।</ref> बधैया पहुँचाबल हे॥8॥
बनखंड बासी हम हजमा, अवधपुर जायब हे।
ललना रे, सीता क भेलै नंदलाल, लोचन पहुँचायब हे॥9॥
चिठिया लिखिये राम देलन, औरो राम देलन हे।
ललना रे, दय दिहें<ref>दे देना</ref> सीता के हाथ, त राम चली आबै हे॥10॥
चिठिया में बाँची बाँची सीता, त मन मुसुकाबै हे।
ललना रे, कौने कुलबोरना<ref>कुल का नाम डुबाने वाला; नालायक</ref>, चिठी लिखल लिखी के पठाबल हे॥11॥

शब्दार्थ
<references/>