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सीपियों को नहीं चाहिए शंख / कर्मानंद आर्य

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नदी को चाहिए समुद्र
हवा को चाहिए बागान
खुशबुओं को चाहिए स्वस्थ्य नाक
आकाश चाहिए पक्षियों को
पर सीपियों को नहीं चाहिए शंख
शंख चाहिए पण्डितों को
युद्ध कामियों को चाहिए शंख
दलालों, मठाधीशों को पड़ती है उसकी जरुरत
एक ही परिवेश में
जन्मते हैं सांप भी नेवले भी
एक ही परिवेश में जन्मते हैं कायर और क्रोधी
ठग-ठगहार
दुनिया में जातियों का संजाल बिछा है
एक परिवेश में एक दूसरे से अनभिज्ञ
किसी को छोटा नहीं चाहिए
छोटा होने पर जात छोटी हो जाया करती है