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सीलन / गीता शर्मा बित्थारिया
Kavita Kosh से
जहां नहीं होता
धूप सा गुनगुना अहसास
हवा सा सुखद स्पर्श
अक्सर
गरमाहट
और ताज़गी
की कमी से
किसी बन्द कमरे से
सीलने लगते हैं
रिश्ते
दीवारों पर
सीलन से जैसे
लगने लगती है
यहां वहां फंफूदी
उपटने लगती हैं
रंग रोगन की
परत दर परत
और दिखने लगती हैं
छिपी हुई दरारें
जैसे रिश्ते से
झड़ रहा हो प्रेम
रोज़ थोड़ा थोड़ा
यूं ही चुपचाप
बिना आवाज
सूरज
ना उगा सको
तो कोई बात नहीं
मगर छोटा सा
अलाव जलाये रखना
हवा के लिए
झरोखा खुला रखना
ताकि झिरता रहे
प्यार और सरोकार
हवा और धूप सा जरूरी