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सुख-संवाद / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
सबसे सुखी वही है जग में, जग से रखे न नाता
खाता-पीता शोर मचाता, कुछ भी कहीं न सोचे
विघ्न किसी से पड़ जाए तो उसका कण्ठ दबोचे
नीति, न्याय, अनुशासन जिसको कुछ भी नहीं सुहाता।
सब से दुखी वही है जग में, जग से साथ निभाए
उसके हँसने पर हँसता हो, रोने पर जो रोए
जग की चिन्ता में खोया-सा रातों को न सोए
चलता है अपने कन्धे पर सूली लिए उठाए ।
लेकिन जग में जोड़-तोड़ कर कोई कहाँ सुखी है
वह भी कहाँ सुखी है जो औरों पर प्राण लुटाए
पीड़ाओं के भुवन-भुवन में भटके आए-जाए
मुझको तो लगता है, यह भी, वह भी बहुत दुखी है।
गोवर्धन की धुरी कहाँ है, लोग बहुत कम जाने
रण में खड़े शूर हैं अपने ऊपर शर को ताने ।