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सुगना मुण्डा की बेटी-7 / अनुज लुगुन

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सुगना मुण्डा की बेटी

अस्तित्व की स्थापना के लिए
अस्मिता के उत्कर्ष के लिए
जन-मुक्ति के स्वर के साथ
वह वहीं खड़ी थी
जो उसके पुरखों की जमीन थी
जो उलगुलान था, हूल था
जनवाद का फूल था
समग्र संबोधन था उसकी चेतना में —
‘यह देश बहुजन का है
यह देश बहुजन का होगा
दलित-पिछड़े, आदिवासी, स्त्राी
सब शोषित जन, सब सर्वहारा
अस्तित्व और अस्मिता के साथ
आँख तरेरेंगे आदमखोर को,

एक की आवाज दूसरे तक
दूसरे की तीसरे तक
तीसरे की चौथे तक
इसी तरह आवाज गूँज उठेगी
सात पहाड़ों पर, सभी दिशाओं से
आसमान में गीत होगा —
‘आदिजन, बहुजन हैं हम
सदियों से शोषित जन हैं हम
सब ओर से घिरे हुए सर्वहारा
हर तरह से खरोंचे हुए रक्तिम तारा
जल-जंगल-जमीन रहित
नहीं होंगे शत्राु पराजित
सात कथा, सात जीवन
श्रमिक जन से ही
होगा सकल परिवर्तन
एक गीत, एक तारा,
रक्तिम ताराµसर्वहारा! सर्वहारा! सर्वहारा!’
और संग साथियों ने भी
दिया अपनी सहमति का स्वरµ
‘ओ आदमखोर!
तुम्हारी सुरक्षा में साँप, बिच्छू
168 ध्
और घड़ियालों की फौज है
तुम्हारी वासनामयी आँखें दहक रही हैं
तुम्हारी जीभ लार टपका रही है
अपने पैने दाँत और पंजों के साथ
तुम हमारी ओर बढ़ रहे हो
लेकिन देखो!
हम तुम्हारे सामने निर्भय खड़े हैं,
तुम्हारे साथ कानूनविद् छली सियार हैं
बुद्धिजीवी, पत्राकार, साहित्यकार मगर हैं
अफसर और शिक्षक भी सब उल्लू हैं
(सब रात को ही ताक-झाँक करते हैं)
तुम हम पर कूटनीतिक हमला करोगे
लेकिन छीन नहीं सकते हमसे हमारी चेतना,
ओ! चारों ओर से
हमें घेरे हुए आदमखोर!
गुप्तचरी में दक्ष
हमारे ही बीच घुसे हुए
कुनुईल, उलट्बग्घा आदमखोर
तुम्हारी खरोंच से
खून धरती पर रिस रहा है
और उससे अंकुरित हो रहे हैं रक्तबीज
रक्तपान करने के बाद
तुम कहाँ दुबक गए हो?
इस भयावह रात में भी
हम पहचान सकेंगे
तुम्हारी पदचाप, तुम्हारे पदचिन्ह,
अब देह नहीं घूमेगी रोगग्रस्त और पीड़ित
अब कोई साँप काटने से आकस्मिक मौत नहीं मरेगा
अब गोड़ बाथा, मुड़ बाथा
देह बाथा, मन बाथा की प्रताड़ना नहीं होगी
नहीं होगा असमय
हमारी सहजीवी सभ्यता का नाश’
और उन्होंने पुकारा पुरखों को
अब कुछ भी अधूरा न हो
अधूरा न हो
ध् 169
अस्मिता और अस्तित्व का स्वर
अधूरी न हो जन-संस्कृति
अधूरा न हो जनवाद
लड़ाई अधूरी न हो
जय हो! जोहार हो! जोहार हो!
सातों जनों ने
पुरखों को अर्पित किया हँड़िया
संग उनके गीत गाया
और महुए की तरह
उसकी खुशबू फैल गई जंगल में
‘‘सुनो रे, सोना रे
जंगल में युद्ध नाद हो रहा है
सुनो रे, सोना रे
जंगल में बिगुल बज रहा है
रियो, रियो, हय रे
सुनो रे, सोना रे
गीत गाओ, पंख सजाओ’’
समग्र संबोधन के साथ
अंतिम बार बिरसी ने कहा
‘अभी-अभी हमारे गाँव में
बाघ ने हमला बोला है
घाव ताजे हैं
खून लगातार रिस रहा है
खून पीकर आदमखोर
कहीं झाड़ियों में डकार ले रहा है
वह फिर आएगा,
हमें याद है पुरखों के किस्से
याद हैं उनके गीत
याद हैं उनकी छापामार कलाएँ
हम जानते हैं जंगली पगडंडियों का नक्शा
हम जानते हैं
महुए की ‘टप-टप’ और
आदमखोर की आहट का फर्क
उसके पंजों के निशान यहीं हैं
वह यहीं कहीं है झाड़ियों में डकार लेता हुआ,
जाओ, जाओ हुकनू
170 ध्
जाओ, जाओ जोना
जितनी जाओ
बिधनी जाओ
सब जाओ लाँघ कर
इतिहास की दीवारें
दर्शन की खाई
और सब पहाड़ों को,
पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्खिन
नगाड़ों का संपूर्ण नाद पहुँचे यहाँ से सब ओर
अनूदित भाषाओं के अखबारों का भ्रम तोड़ कर
हो सहजीविता का सामूहिक गान’’
और बिरसी की
बाँहों के साथ ही खुली
गीतों की बाँहें
धनुष का आलिंगन खुला
समूह की भुजाएँ वहीं जुड़ गईं
और वहीं बन गया अखड़ा
‘हमारे देश में
हमारी दिशाओं में
बाँसुरी की धुन है
मांदल की थाप है,
सुनो रे हे टिरुंग
सुनो रे हे असकल
तलवार चमकाते हुए
मशाल लिए हुए
कहाँ जा रहे हो?
जदुर के लिए जा रहे हो
करम के लिए जा रहे हो
लड़ने के लिए जा रहे हो
भिड़ने के लिए जा रहे हो
कहाँ जा रहे हो?
सुनो रे हे टिरुंग
सुनो रे हे असकल
संगी संगोतियों को
न्योता देते जाओ।’’
ध् 171
संदर्भ
1. मुण्डाओं की किंवदंती के अनुसार कुछ आदमी बाघ बनने की विद्या जानते हैं। उस कला का
प्रयोग वे अपने हित में करते हैं। कहा जाता है कि उनकी भूख किसी दूसरे के शिकार से नहीं
मिटी या उन्हें कोई शिकार नहीं मिला तो वे अपने स्वजनों को ही शिकार बना लेते हैं। मुण्डारी
में उन्हें ‘चानर-बानर’ या ‘कुनुईल’ कहते हैं। सादरी में उन्हें ‘उलट्बग्घा’ कहा जाता है।
2. मुण्डाओं में वैद्य-विद्या सीखने की एक प्रक्रिया है ‘गुड़ी’। मुख्यतः यह साँप काटने की औषधि
के ज्ञान की विद्या है। ‘बंदई’ की अमावस्या की रात में ही इस तरह के वैद्य-विद्याओं की अंतिम
परीक्षा होती है। ‘बंदई’ आदिवासियों का त्योहार है इसे अन्य आदिवासी समुदाय ‘सोहराई’ भी
कहते हैं। मुंडा में ‘बंदई’ कहा जाता है। साथ ही मुण्डाओं की किंवदंती है कि बंदई के दिन
ही आमानवीय शक्तियाँ भी साधना करती हैं।
3. ‘अहद् सिंग’ एक प्रकार की जड़ी है। मुण्डाओं की मान्यता है कि इसे लाँघने के बाद मनुष्य
रास्ता भूल कर एक दूसरी दुनिया में पहुँच जाता है।
4. गितिः ओड़ाः (मुण्डा समाज की), धुमकुड़िया (उराँव), घोटुल (मुड़िया) आदिवासी समाज की संस्थाएँ
रही हैं जहाँ युवक-युवतियाँ समाज के लिए उत्तरदायी बनते हैं।
5. जदुर, करम, खेमटा, छऊ आदिवासी नृत्य की शैलियाँ हैं। इन शैलियों में गीत भी होते हैं। पाडू
भी गीत की एक शैली ही है।
6. कंपनी तेलेंगा = ब्रिटिश कंपनी के सिपाही/अंग्रेज सिपाही
7. देंवड़ा = पूजा
8. दिकू = शोषणकारी बाहरी लोग