सुण कलम साच बोल्यां सरसी / गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
ओ बगत बायरो बतळावै
उणसूं अणजाण कियां बणसी।
जे भाण ऊगणो भूल्यो तो
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।।
जण-जण रै मन में भय जब्बर
रण-रण त्रासां रणकार हुवै।
भण-भण अै लोग भला भटकै
खण-खण खोटी खणकार हुवै।।
देवां रै झालर झणकारां
रैयत रुणकारां दबी पड़ी।
फांफी फणगारा फळफूलै
ईमान धरम पर मार पड़ी।।
कण-कण धरती रो कांपै है
आभो किम धीरज अब धरसी।
मरजाद धरम नै राखण हित
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 01।।
जिण-जिण नै चुणिया चोखा कह
धोखा उण-उण सूं पाय लिया।
किण-किण पर करस्यां कोप कहो
मिण-मिण पर भोपा माच रिया।।
चुणियोड़ा भिळिया चौसर पर
मौसर भारत रो मंडण नै।
खो’सर खावैला खराखरी
औसर मिलतां ई जनगण नै।।
युग चारण मौन हुयां जग रा
डाकी लोभीड़ा किम डरसी।
सदराह बतावण रैयत नै
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 02।।
घट-घट में आं रै घोटाळा
कोटा’ळा गेहूं खा ज्यावै।
नोटां सूं बोट खरीदै अर
बोटां सूं नोट कमा ज्यावै।।
राहू केतू रा मेळा है
चांदो अर सूरज राड़ करै।
अड़वा खुद पड़वा ताक रैया
ऊभी फसलां नै बाड़ चरै।।
खुद आज चांदणी गिरवी है
चांदै सूं इमरत किम झरसी।
तारां री निरख निसासां नै
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 03।।
नेता जद धारै नुगराई
सुगराई अफसर सिखळावै।
सगळा ई मिळज्या सागै तो
कुटळाई किणसूं रुक पावै।।
झुटळावै जन नै द्यै झांसा
मुळकै आपस में मिल ज्यावै।
खट जाय विदेषी खातां में
विटनेस परस्पर दे आवै।।
पलट्यां ही सरसी अब पासो
ओ बोल खुलासो कुण करसी।
खुद मर्यां बिनां है सुरग कठै
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 04।।
औरां सूं पैली आगत री
पदचाप सुणणियां पथराया।
परकत रै मूक पळाकां नै
महसूस करणियां मुरझाया।।
अंतस रै ऊँडै भावां नैं
अनुभूत करणिया अबै कठै।
बै मन मसोस नै मौन धार
गूंगां ज्यूं बैठा आज अठै।।
अब जामवंत री जीभ बिनां
कपि तन में पौरुष कुण भरसी।
सतवट पर राखण साहित नै
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 05।।
सरकस अर साहित बीच जकी
भेदक रेखावां सै भेळी।
कविता नैं भांडबिगोवा कर
मंचां पर करदी मटमैली।।
मरजाद लाज सब तार-तार
मजलिस में मरकट नाच रिया।
कविराज लतीफा पढ़-पढ़ कर
है दाद, वजीफा पाय रिया।।
तुकबंद्यां ठोकै ताल, माल रा
भर्या लिफाफा ले ढळसी।
कविता रो अंतस कुरळावै
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 06।।
आम जनां में एक खास
विश्वास जगावै वा खाकी।
दोख्यां रै मन में दहशत रा
भूचाल मचाद्यै वा खाकी।।
अपराध मिटावण खाकी रो
हर खौफ काबिले अंजस है।
पण निरपराध पर निर्ममता
कर-कर अण पायो अपजस है।।
चोरां सूं मिलगी आ चुपकै
साचां नै चोर बणा हरखी।
खुद्दार बणावण खाकी नै
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 07।।
ऊपर है करतार धरा पर
परतख में पटवारी देखो।
चित्रगुप्त जिम प्राणिमात्र री
सांस-सांस रो राखै लेखो।।
बूढा अर बाळक सै जाणै
भलां विधाता नौ बर नट्टो।
पोपां रै दरबार पेमलो
पटवारी लिखद्यै सो ई पट्टो।।
पटवारी सूं पीड़ जग री
नेता, अफसर क्यों कहसी ?
करसां रो करज चुकावण नै
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 08।।
न्याय दिरावण निरदोषां
जुलम्यां नैं जेळ करावण नै।
सत रै बड़लै नैं सरसावण
पाप्यां सूं पिंड छुडावण नै।।
कानून तणी गीता’र कुरानां
पढै वकालत करणी सीखै ।।
न्याय देव रै चरणां निंवता
काळा कोट घणेरा दीखै।।
जिरह करै इजलास मांयनै
पाप तणी सै परतां खोलै।
पण रिपियां री थैल्यां आगै
न्याय ताकड़ी डगमग डोलै।।
कानून कायद यूं लागै
निबळां रै खातर ही रहसी।
विक्रम रा वंषज जे भटक्या
सुण कलम साच बोल्यां सरसी।। 09।।
है नाव अजे लग सावजोग
बस नाविक री निष्ठा घटगी।
लहरां रै लोभ निमंत्रण नै
आंख्यां झट उणरी जा अटकी।।
पतवार संभाळो निज हाथां
बातां सूं काम सरै कोनी।
जातां-पातां नै भूल्यां बिन
घातां रो दौर रुकै कोनी।।
(अब) समय सांच री कथा सुणावण
खुद वीरभद्र बणणों पड़सी।
समदर री साख बचावण नै
सुण कलम सांच बोल्यां सरसी।। 10 ।।