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सुधियों के गाँव / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
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मना पाँखी उड़ चल रे
सुधियों के गॉव
पिहू-पिहू पपीहरा
मस्ती में गाए
सावन की बूँदों से
तनम न सरसाए
गोरी के थिरक उठे
मस्ती में पाँव
अमुआ की डाली पर
झूल रही बाला
मन चाहे छू लेना
मेघों की माजा
यौवन की छाँव तले
ढॅंढूं मैं छाँव
पायल की झनन-झनन
कर रही ठिठोली
पनघट भी बोल रहा
रस-भीनी बोली
टेर रही पियराये
महुआ की छाँव