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सुनता हूँ इस मुल्क में… / बैर्तोल्त ब्रेष्त / असद ज़ैदी

[संदर्भ अमेरिका]
1
सुनता हूँ इस मुल्क में ’समझाना’, ’यक़ीन दिलाना’ क्रियाएँ ग़ायब हो चुकी हैं
उनकी जगह ले ली है ’बेचना’ शब्द ने। एक युवा औरत को
अपने नवजात शिशु को छाती से दूध पिलाता देखकर वे कहते है :
वह उसे दूध बेच रही है। लोकल आदमी
बाहर से आए अजनबी को बर्फ़ से ढकी पहाड़ की चोटी दिखलाता है
तो जानिए कि वह उसे नज़ारा बेच रहा है। अख़बारों के अनुसार
राष्ट्रपति का मिशन है जनता को आक्रामक राज्यों के ख़िलाफ़
युद्ध बेचना। अगर मेरा जंगी ऐलान यह है कि
“बाज़ारवाद, बाज़ार के अपराध मुर्दाबाद !”
तो मेरे दोस्त कहते हैं कि पहले मुझे यह बात
शोषितों मज़लूमों को बेचनी पड़ेगी ।

2

सुनता हूँ इस देश में निर्णायक चीज़ है — सफलता ।
सिर्फ़ अपने भाई की हत्या का इरादा
काफ़ी नहीं है। जब तक मैं उसे मारकर खा न लूँ
तब तक कोई मुझे प्रशंसा भरी नज़र से नहीं देखेगा ।

3

सुनता हूँ इस देश में भी ख़ुश लोग पाए जाते हैं
और देशों की मानिन्द। लेकिन
उनको पहचानना असंभव है, क्योंकि मुस्कुराना
जो कि मेरे अपने शहर में प्रसन्नता का लक्षण है
यहाँ पर नागरिक कर्तव्य है । यहाँ सब के सब मुस्कुराते है
धोखा खाने वाला भी धोखा देने वाला भी, तरोताज़ा चेहरे वाला भी
और थका हुआ मरणासन्न आदमी भी । मुस्कुराहट की कमी नहीं
और जो भूख की यातना झेल रहे हैं उनमें भी न मुस्कुराने की
जुर्रत नहीं है । यहाँ तक कि रिश्तेदारों से पैसा वसूलकर
दफ़नाने से पहले मृतक के चेहरे को
मुस्कुराहट से सजाना भी एक पेशा है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी