सुनता हूँ रमजान माह का
उदय हुआ अब पीला चाँद,
मदिरालय की गलियों में अब
फिर न सकूँगा कर फ़रियाद!
मैं जी भर शाबान महीने
पीलूँगा मदिरा इतनी,
पड़ा रहूँ अलमस्त ईद तक
रहे न रोज़ों की भी याद!
सुनता हूँ रमजान माह का
उदय हुआ अब पीला चाँद,
मदिरालय की गलियों में अब
फिर न सकूँगा कर फ़रियाद!
मैं जी भर शाबान महीने
पीलूँगा मदिरा इतनी,
पड़ा रहूँ अलमस्त ईद तक
रहे न रोज़ों की भी याद!