भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनाऊँ क्या फ़साना बेकसी का / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनाऊँ क्या फ़साना बेकसी का
भरोसा ही नहीं जब जिंदगी का

गरीबी जब किसी के पास आती
न देता साथ कोई आदमी का

रहे तुम यार जब तक साथ मेरे
नहीं अहसास था कोई कमी का

घिरीं काली घटाएँ आसमाँ में
रहा मौसम नही अब वो खुशी का

करें क्या कुछ समझ आता नहीं है
अजब आलम है अपनी बेखुदी का

दिवाली आ गयी है पास शायद
झमाका हो रहा है रौशनी का

फ़लक की गोद मे ही है टहलती
नहीं लेकिन भरोसा चाँदनी का