सुनाऊँ क्या फ़साना बेकसी का
भरोसा ही नहीं जब जिंदगी का
गरीबी जब किसी के पास आती
न देता साथ कोई आदमी का
रहे तुम यार जब तक साथ मेरे
नहीं अहसास था कोई कमी का
घिरीं काली घटाएँ आसमाँ में
रहा मौसम नही अब वो खुशी का
करें क्या कुछ समझ आता नहीं है
अजब आलम है अपनी बेखुदी का
दिवाली आ गयी है पास शायद
झमाका हो रहा है रौशनी का
फ़लक की गोद मे ही है टहलती
नहीं लेकिन भरोसा चाँदनी का