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सुनी सुनाई हुई दास्तान बाक़ी है / मनोहर विजय

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सुनी सुनाई हुई दास्तान बाक़ी है
नए नगर में पुराना मक़ान बाक़ी है

ये बात सुनके किसी को यकीं नही आता
कि मेरे शहर में अमनो-अमान बाक़ी है
            
अभी नुमायाँ हैं आसार जिऩ्दगानी के
अभी बदन में हरारत है जान बाक़ी है

इसी मलाल में हैं मुझको लूटने वाले
कि मेरे सर पे अभी आसमान बाक़ी हैं
    
अभी कमी है ‘विजय’ उसकी मेहरबानी में
अभी कोई न कोई इम्तिहान बाक़ी है