भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनो, जो करना ज़रूरी नही (जहाँ ख़त्म होती है पगडण्डी) / शेल सिल्वरस्टीन / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
मेरे बच्चे, सुनो
कि क्या करना
ज़रूरी नही
सुनो, क्या नही
करना है
सुनो, क्या नही
करना चाहिए
नामुमकिन, नही होगा
जैसे शब्दों को
कभी मत सुनो
कशमकश में क्यों हो ?
मेरे पास चले आओ
कुछ भी नामुमकिन नही,
मेरे बच्चे
कुछ भी हो सकता है
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीता पोरवाल