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सुनो प्रजाजन / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

सुनो प्रजाजन
अंधे राजा के घर में
मत खोजो सूरज

वहाँ मिलेंगे तुम्हें कुहासे-घुप अँधियारे
सभागार में रोज़ गये हैं काजल पारे

बुझे दिये रक्खे
गुम्बद के हर मोखे में
करो न अचरज

एक संत ने जोत रची थी बरसों पहले
उसी जोत से राजभवन थे हुए सुनहले

खोज रही
पुरखिन पगडंडी उसी संत की
अब भी पदरज

कोट वही गिरवी रख लाये शाह अँधेरे
परजा के आँगन भी हैं हाटों ने घेरे

कहा पन्त ने –
अच्छे दिन आने वाले हैं
रक्खो धीरज