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सुनो महाजन / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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सुनो महाजन !
कुछ भी साथ नहीं जायेगा
रह जायेगा सब यहीं बंधु

यह रत्नजटित
सिंहासन
यह जाति-पाँति मधुप्राशन
महल अटारी कोष विपुल
ये सेना के घोष तुमुल

सुनो महाजन !
जो खोयेगा वह पायेगा
 रह जायेगा सब यहीं बंधु

ये तोप,मिसाइल
रथ-वथ
खेचर के क्षिप्र पवन पथ
ये मार-काट हत्याएँ
ये रिश्तों की गाथाएँ
   
सुनो महाजन !
जो बीतेगा वह गायेगा
रह जायेगा सब यहीं बंधु

जो बोया
वह काटोगे
कब तक सबको बाँटोगे
यात्रा यह रहे अकेले
पापों के ओढ़ झमेले

सुनो महाजन !
जो रीतेगा ले जायेगा
रह जायेगा सब यहीं बंधु