भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनो माँ / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
सुनो माँ !
तुम सिर्फ माँ ही नहीं हो मेरी
जुड़वाँ सहोदर भी हो।
अँकुर के साथ ही तो
जनमती है वह
जो धारयित्री है।
इसीलिए तो मैं आभारी नहीं हूँ माँ
क्योंकि वह तो जड़ो का ही
सिकुड़ना नहीं
धरती का मरना भी है
और जो जुड़वाँ सहोदर हैं
वे सिर्फ जीते नहीं
साथ ही मरते भी हैं।
इसलिए नहीं है आभार
सिर्फ स्वीकार है यह माँ
कि तुम हो और मैं बेटा हूँ,
कि मैं हूँ और तुम माँ हो।
(1976)