भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुन्दर श्याम कमल-दल-लोचन / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन्दर श्याम कमल-दल-लोचन दुखमोचन व्रजराजकिशोर।
देखूँ तुम्हें निरन्तर हिय-मन्दिर में, हे मेरे चितचोर!
लोक-मान-कुल-मर्यादाके शैल सभी कर चकनाचूर।
रखूँ तुम्हें समीप सदा मैं, करूँ न पलक तनिकभर दूर॥
पर मैं अति गँवार ग्वालिनि गुणरहित कलंकी सदा कुरूप।
तुम नागर गुण-‌आगर अतिशय कुलभूषण सौन्दर्य-स्वरूप॥
मैं रस-जान-रहित रसवर्जित, तुम रसनिपुण रसिक सिरताज॥
इतने पर भी दयासिन्धु तुम मेरे उरमें रहे विराज॥