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सुन्न नगर, अनजान डगर / धीरेन्द्र
Kavita Kosh से
सुन्न नगर, अनजान डगर,
अछि बहुत दूर मोर ठाम।
बीहड़ पथमे भटकि रहल छी,
दूर हमर अछि गाम !
चलइत-चलइत पएर टुटै अछि
चहकि चहल अछि अंग,
संगी हम छी असगर असगर
दूर भेल सभ संग।
भाँय-भाँय करइत अछि परिसर,
सन-सन बहय बसात,
हमरा असगर जानि एना ई
कए रहले उत्पात।
चन्ना मामा दुबकल सूतल
कम्बल-सन अन्हार,
राति डइनियाँ चला रहल
जनु सावर मन्त्रक जाल।
फन्नापर फन्ना अबैत अछि
ओझरा रहले पएर,
जोर-जोरसँ चिकरि
रहल छी, मुदा बनल सभ गैर।
देबै दोष किए ककरो हम
बिधिए हमरासँ वाम।
सुन्न नगर, अनजान डगर अछि, बहुत दूर मोर ठाम।