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सुन कारी बदरी / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सुन कारी बदरी अरी!
क्यों है तू कटुता भरी।
छलका मधुरस प्यार दे,
तन मन की तू बावरी।
सूना सावन कर सरस।
मत खेले तू दाँवरी।
कटे सदा प्यारा सफर,
धरा सरस कर साँवरी।
काले मेघा से डरा।
विरहन को मत डाह री।
दुल्हन-सी यह हो धरा
चूनर धानी साज री
लोभी लंपट से बचा
प्रेम डगर की साध री।