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सुन के मेरे इश्क़ की रूदाद को / 'हफ़ीज़' जौनपुरी

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सुन के मेरे इश्क़ की रूदाद को
लोग भूले क़ैस को फ़रहाद को

ऐ निगाह-ए-यास हो तेरा बुरा
तू ने तड़पा ही दिया जल्लाद को

बाद मेरे उठ गई कद्र-ए-सितम
अब तरसते हैं हसीं बेदाद को

इक ज़रा झूठी तसल्ली ही सही
कुछ तो समझा दो दिल-ए-नाशाद को

हाए ये दर्द-ए-जिगर किस से कहूँ
कौन सुनता है मिरी फ़रियाद को

जाएँगे दुनिया से सब कुछ छोड़ कर
हाँ मगर ले कर किसी की याद को

अब मुझे मानें न मानें ऐ ‘हफीज़’
मानते हैं सब मिरे उस्ताद को