सुन रे सुन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
सुन रे सुन
उनका चरनन के आवाज सुनाता।
ऊ आवतारे रे, आवतारे।
उनकर पदचाप सुनाता
कान लगा के सुन
उनका चरनन के आवाज सुनाता।
युग-युग से
हर पल, हर दिन, हर रात
ऊ आवतारे रे, आवतारे
कान लगा के सुन
उनकर पदचाप सुनाता!
युग-युग से
हर पल, हर दिन, हर रात
ऊ आवतारे, रे आवतारे!
मन का मउज में
जब जब गीत गवलीं
जतना गीत गवलीं
सबमें सुनाइल स्वर
उनका अवाई के।
सुन रे सुन
कान लगा के सुन
उनकर पदचाप सुनाता।
ऊ आवतारे रे आवतारे
उनका चरनन के आवाज सुनाता।
फागुन में जब बसंत आवेला
तब ऊ जंगल का राहे-रहे
आवे ले रे, आवे ले,
कतना दफे आवे ले!
सावन के घनघोर अन्हार रात में
ऊ मेघ का रथ पर चढ़ के आवेले
आवे ले रे आवेले
कतना दफे आवे ले।
दुख पर जब दुख आवेला
भारी-भरी दुख आवेल
तब उनका चरनन के आवाज
हमरा छाती में सुनाला।
जब हमरा जीवन में
ऊ कबो सुख भेज देवे ले
तब उनका चरनन के स्पर्श
हमरा तन मन के छुएला।
आवतारे रे आवतारे
कान लगा के सुन
उनकर पदचाप सुनाता।।