भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुपना / विनोद स्वामी
Kavita Kosh से
माटी रा मोल लियोड़ा दो मोरिया,
दायजै में आयोड़ी दीवार-घड़ी,
जेठ री दुपारी में
हाथां काढ्योड़ी चादर अर सिराणा,
गूगै री चिलकणी कोर आळी फोटू
बरसां सूं संदूक में पड़ी देखै
एक
कमरै नैं सजावण रा सुपना।