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सुफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है / फ़ाज़िल जमीली

सुफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
तेरी ख़ुशी के लिए तेरा ग़म भी रखना है

दिल ओ नज़र में हज़ार इख़्तिलाफ हों लेकिन
जो इश्‍क़ है तो फिर उन को बहम भी रखना है

बिछड़ने मिलने के मानी जुदा जुदा क्यूँ हैं
हर एक बार जब आँखों को नम भी रखना है

हसीन है तो उसे अपनी बात रखने को
करम के साथ रवा कुछ सितम भी रखना है

ज़्यादा देर उसे देखना भी है ‘फ़ाजिल’
और अपने आप को थोड़ा सा कम भी रखना है