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सुबह-ए-रौशन को अन्धेरों से भरी शाम न दे / अमीता परसुराम मीता
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सुबह-ए-रौशन को अन्धेरों से भरी शाम न दे
दिल के रिश्ते को मेरी जान कोई नाम न दे
मोड़ आते ही मुझे छोड़ के जाने वाले
फिर से तन्हाईयाँ बेचैनियाँ कोहराम1 न दे
मुझको मत बांध वफ़ादारी की ज़ंजीरों में
मिस्ले-बादल2 हूँ भटक जाने का इल्ज़ाम न दे
मुतमइन3 दोनों हैं मैं और मेरी तर्ज़-ए-हयात4
तश्नगी5 मेरे मुआफ़िक़6 है कोई जाम न दे
आसमाँ देने का ऐ दोस्त दिखावा मत कर
मुझको उड़ने की इजाज़त तू तह-ए-दाम7 न दे
हाँ निभाये हैं मोहब्बत के फ़राइज़8 मैंने
मुस्तहिक़9 भी हूँ मगर कोई भी इनआम न दे
दिल के अफ़साने का आग़ाज़ हसीं है ‘मीता’
सिलसिला यूँ ही चले कोई भी अंजाम न दे
1. शोर शराबा 2. बादल की मिसाल 3. संतुष्ट 4. जीने का ढंग5. प्यास
6. उचित 7. जाल के नीचे 8. कर्तव्य 9. हक़दार