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सुबह का भूला / समृद्धि मनचन्दा
Kavita Kosh से
जो सुबह का भूला
शाम को लौटे
तो भूला नहीं कहते
पर जो सुबह का भूला
दोपहर में लौटे तो
उसे चखाना धूप की चित्तियाँ
जो कहीं लौटे रात ढले
तो पिलाना घोलकर
बिहाग में चान्द
यदि भूला ही रहे
तो बहा देना पेड़ों के प्रेमपत्र
नदियों की थाह में
भूलना प्रेम की पहली सीढ़ी है