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सुबह तीन बजे अनुवादक का प्रायश्चित / इद्रा नोवे / अनिल जनविजय

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प्रिय सी०, तुम्हारा वाक्य

मैंने छोड़ दिया गरम पानी में
और फिर उबाल से बात की ।

मैंने कहा उससे — ये लो मेरा अँगूठा
और जलाओ इसे ।

ये लो नरम दिल
मेरे हाथ और मेरी बाँह का

और मेरे तबाह बदन की गुद्दी ।

मैंने कहा — हे भाप ! मुझे स्वीकार करो
और मैं जलने लगी

अपने इन पन्नों के साथ । अदृश्य हो जाने का मतलब
यह नहीं है कि कोई व्यक्ति

छाला नहीं बनेगा । इसका मतलब यह नहीं है

कि छालों में नहीं भरेगा पानी
उनमें पैदा नहीं होंगे पानी के बुलबुले

और जब उनमें नश्तर लगाया जाएगा

नीचे से नहीं निकलेगा कच्चा गोश्त ।
पहले शब्द सामने आएगा, फिर उसमें धुन्धला रिसाव

शुरू होगा — किसी के दिमाग में क्या है
इसे हम कुरेद सकते हैं पर

उसकी त्वचा कभी नहीं खुरच सकते ।
 
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही रचना मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
                Idra Novey
    Translator’s Confession, 3 a.m.

Dear C, I dropped

your sentence in hot water.
I talked to the boil. I said Here

is my thumb for you to burn.

Here is the soft heart
of my hand and my arm and

the nape of my wreck.

I said vapor, just take me.
I’m done burning

with these pages. Being invisible
doesn’t mean a person

won’t blister, doesn’t mean

the blisters won’t fill
with pockets of water

or when lanced the rawest flesh

won’t emerge. First the word
then the murky leak

begins — what another mind
may scrape against

but never skin.