भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुबह फक है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
सुबह फक है
रोशनी गफ है
आदमी को शक है
सुबह न होने का
रोशनी न होने का
(रचनाकाल :28.07.1967)