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सुबह / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
सुबह ने आकर
मेरा चुम्बन लिया
फिर
मैं उठकर बरामदे में पहुँचा
और आरामकुर्सी में बैठ कर
बीती रात को रचे षड्यंत्रों को याद करने की कोशिश करता रहा
इस बीच गाय रंभाई
और सारे षड्यंत्र उसमें विलीन हो गए
जिन्हें फिर याद नहीं कर पाया