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सुब्ह होता है शाम होता है / मेला राम 'वफ़ा'
Kavita Kosh से
सुब्ह होता है शाम होता है
ख़ून-ए-नाहक़ मुदाम होता है
फेर लेते हो मुँह हिक़ारत से
ये जवाब-ए-सलाम होता है
ख़ौफ़ आता है जिस को मरने से
उस का जीना हराम होता है
आ के रिंदों में हो शरीक ऐ शैख़
छुप के पीना हराम होता है
कहते हो आप का यहाँ क्या काम
अर्ज़-ए-ग़म भी तो काम होता है
क्या कलाम उस की ख़ुश-नसीबी में
जिस से तू हम-कलाम होता है
फ़ित्ने है बे-क़रार उठने को
कौन महशर-ख़िराम होता है
आमद आमद है ऐ 'वफ़ा' किस की
आज क्या एहतिमाम होता है