सुब्ह होता है शाम होता है 
ख़ून-ए-नाहक़ मुदाम होता है 
फेर लेते हो मुँह हिक़ारत से 
ये जवाब-ए-सलाम होता है 
ख़ौफ़ आता है जिस को मरने से 
उस का जीना हराम होता है 
आ के रिंदों में हो शरीक ऐ शैख़ 
छुप के पीना हराम होता है 
कहते हो आप का यहाँ क्या काम 
अर्ज़-ए-ग़म भी तो काम होता है 
क्या कलाम उस की ख़ुश-नसीबी में 
जिस से तू हम-कलाम होता है 
फ़ित्ने है बे-क़रार उठने को 
कौन महशर-ख़िराम होता है 
आमद आमद है ऐ 'वफ़ा' किस की 
आज क्या एहतिमाम होता है