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सुरमा मिस्सी कंघी चोटी भूली है / बशीर बद्र

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सुरमा मिस्सी कंघी चोटी भूली है
सूखे पत्तों पर जो मैना बैठी है

कुहरे के लरज़ीदा हाथों में अक़्सर
तुलसी और अदरक की चाय छलकती है

वो जो रंग चमकता है उस टहनी पर
हाथ आये तो फूल नहीं तो तितली है

अपने ही मिर्चें पूदीने सूख गए
वर्ना दुनिया माश की दाल तो अब भी है

इस सुनसान सी शाम में ऊँचे टीले पर
ज़ुल्फें खोले वो लड़की क्यों बैठी है

शावर के नीचे घुलती जाती है शाम
मेरी आँखों पर इक टावल लिपटी है

ऐब पुराने घर का ये ही है बाबा
कोई आये न आये घंटी बजती है

तीन समंदर दो सेहरा उसके आगे
नागिन जैसी एक लकीर चमकती है