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सुर्ता-पद-निर्वाण (1) / अछूतानन्दजी 'हरिहर'
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सुर्ता तन मन धन कुर्बान, है निर्वाण-पद में विचरी।
जागा आतम-अनुभव ज्ञान, परख सतगुरु से करी॥
सुर्ता सत्य सार पहिचान, यथारथ की जाँच परी।
तब रोचक भयानक जान, अंध विश्वास बिसरी॥
सुर्ता आत्मिक दैहिक मान, त्याग मत देय तिसरी।
बिन दैशिक वृत्ति विज्ञान, शूद्ध नहिं होत खरी॥
सुर्ता तीनों अनुभव प्रमाण, प्रमेय, पारख ले धरी।
पाया जीवन-मुक्ति निसान, "हरिहर" व्याधि हरी॥