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सुहाना सपना / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
मानो थम-सा गया है
वक्त का पहिया
या कोई पीछे खींच रहा है
समय की सूई।
अचंभित हूँ मैं
कैसे पहुँच गया
फिर उसी घड़ी में
जब उतारी थी फोटो
पुराने घर की बाखळ में
दादा-दादी के साथ
हम तीनों भाई-बहन
यस!
स्माइल प्लीज!
ओ.के.!!
क्लिक की आवाज के साथ
कैमरे में कैद हो गया
वह पल।
चौंक उठता हूँ
क्या यह सपना है
गर सपना भी है
तो कितना सुहाना है।