सूखे वृक्षों की प्रार्थना / दिनकर कुमार
सूखे वृक्षों की प्रार्थना हरियाली के लिए है
सूखे खेतों की प्रार्थना बरसात के लिए है
भूखे बच्चों की प्रार्थना अनाज के लिए है
सूने हृदय की प्रार्थना सुकून के लिए है
अब मौसम छिपाए जाते हैं तहख़ानों के भीतर
अब सिंचाई विभागीय काग़ज़ों में खो जाती है
अब अनाज सड़ जाते हैं गोदामों के भीतर
और घुटन की क़ैद में सिसकता है सुकून
मुस्कराहट की बिजली भी नहीं कौंधती
आँखों से बरसात भी नहीं हो पाती
क़ायदे से सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जाता
घुटनों के बल पूरी आबादी घिसट रही है
सबके पास मीठे वायदे हैं और सुनहरे सपने हैं
एक अदद देश है नक़्शा है और इतिहास है
संविधान है गोली है लाठी है कानून है
वर्दी है हिस्सा है रिश्वत है अनुदान है
वृक्षों की तरह एक ही स्थान पर खड़े रहकर
चट्टान की तरह अपनी ज़ुबान को सीकर
खेतों की तरह दरारों की पीड़ा सहकर
अब तुम कब तक स्वयं को जीवित कह सकोगे ।