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सूतल सनेह आके के दो जगा गइल / रामरक्षा मिश्र विमल

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सूतल सनेह आके के दो जगा गइल
जिनिगी में दरद के बा लहबर लगा गइल ।
                            
बिरहिन के बात केहू कइसे करे भला
हमरा के देखि के बा सभ्भे बगा गइल ।

दिल के दरद कहीं हम केकरा ले जाइके
मुसुकी उमर के केहू लेके परा गइल ।

कतना ले हम करेजा के घाव देखाईं
उनुका नयन से बाटे बहुते दगा गइल ।

फागुन कहाँ गइल ना कुछऊ लगल पता
सावन बा आँख में अब आके समा गइल।