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सूरज उगा तो फ़ूल-सा, महका है कौन-कौन / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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सूरज उगा तो फ़ूल-सा, महका है कौन-कौन
अब देखना यही है कि, जागा है कौन-कौन

बाहर से अपने रूप को ,पहचानते है सब
भीतर से अपने आप को ,जाना है कौन-कौन

लेने के सांस यों तो ,गुनहेगार हैं सभी
यह देखिए कि शहर में ,जिन्दा है कौन-कौन

अपना वजूद यों तो ,समेटे हुए हैं हम
देखो इन आंधीयों में, बिखरता है कौन-कौन

दावे तो सब के सुन लिए,"आज़र"मगर ये देख
तारे गगन से तोड़ कर, लाता है कौन-कौन