सूरज उगा तो फ़ूल-सा, महका है कौन-कौन
अब देखना यही है कि, जागा है कौन-कौन
बाहर से अपने रूप को ,पहचानते है सब
भीतर से अपने आप को ,जाना है कौन-कौन
लेने के सांस यों तो ,गुनहेगार हैं सभी
यह देखिए कि शहर में ,जिन्दा है कौन-कौन
अपना वजूद यों तो ,समेटे हुए हैं हम
देखो इन आंधीयों में, बिखरता है कौन-कौन
दावे तो सब के सुन लिए,"आज़र"मगर ये देख
तारे गगन से तोड़ कर, लाता है कौन-कौन