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सूरज कल भोर में जगाना / जयकृष्ण राय तुषार
Kavita Kosh से
नींद नहीं
टूटे तो
देह गुदगुदाना |
सूरज
कल भोर में
जगाना |
फूलों में
रंग भरे
खुशबू हो देह धरे ,
मौसम के
होठों से
रोज सगुन गीत झरे ,
फिर आना
झील -ताल
बांसुरी बजाना |
हल्दी की
गाँठ बंधे
रंग हों जवानी के ,
इन सूखे
खेतों में
मेघ घिरें पानी के ,
धरती की
कोख हरी
दूब को उगाना |
लुका -छिपी
खेलेंगे
जीतेंगे -हारेंगे
मुंदरी के
शीशे में
हम तुम्हें निहारेंगे ,
मन की
दीवारों पर
अल्पना सजाना |