भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरज का फ़व्वारा-2 / इदरीस मौहम्मद तैयब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरज बढ़ता है ऊपर की ओर
आसमान के बीच तक उठ कर मेरी ओर
झुकता है
मेरी कोठरी के बीचोंबीच
एक फ़व्वारे की तरह रंगीन रोशनी
बिखेरते हुए
मैं लेट जाता हूँ
और पूर्ण समर्पण और बंद आँखों के
साथ इस फ़व्वारे में
अपने चेहरे को भिगो लेता हूँ
रोशनी मेरे अंदर घर कर जाती है
जैसे तुम्हारे मिलन में आँसू
ओ सूरज, अपनी चाल धीमी करो
क्योंकि यह रोशनी मुझे उड़ा कर
आसमान तक ले जाएगी
जिससे मैं अपने और तुम्हारी
बाँहों के बीच का फ़ासला
पलक झपकते तय कर लूँगा ।

रचनाकाल : 26 जनवरी 1979

अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस