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सूरज की हरवाही / रामकिशोर दाहिया

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 जेठ तमाचे
सावन पत्थर
मारे सिर चकराये
माघ काँप कर
पगडौरे में
ठण्डी रात बिताये

भूखे पेट
बिहनियाँ करती
सूरज की
हरवाही
हारी-थकी
दुपहरी माँगे
संध्या से चरवाही

देर रात तक
पाही करके
चूल्हा चने चबाये

चिंताओं से
दूर झोंपड़ी
देकर ब्याज पसीना
वक़्त महाजन
मूलधनों में
जोड़े लौंद महीना

रातों को दिन
गिरवी धरकर
अपने दाम चुकाये

मंगल में
बसने की इच्छा
मँगलू मन से कूते
ममता के
हाथों गुड़पानी
जीवन सुख अनुभूते

हाथ नेह का
फिरे पीठ पर
अंक लिये दुलराये

०००