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सूरज साम्ही रैईजै / रचना शेखावत
Kavita Kosh से
सूरज थूं साम्हीं रैईजै
भलांई डील पतो म्हारो
अंधारै री छींयां नीं चाईजै
भलांई बठै होवो कोई सपनलोक
सूरज साम्हीं रैईजै कै म्हनै
रात रा अंधारां सूं जूझतां नै
राह दिखावणी है
चीन्हींस’क जोत
सीतळ कर‘र
घरां ले ज्यावणीं है
जद म्हूं चकूंला एक-एक कळा सूं
थूं देईजै एक-एक किरण ओज री
म्हैं फेरूं उठूंला पूनम रो चांद बण
सूरज थूं म्हारै साम्हीं रैईजै।