कृष्णपक्ष को
पार करके आया हुआ चंदर्मा
शुक्लपक्ष की खुशी
लिखता है सूरीनामी नदी के वक्ष पर।
लहरें पढती हैं
चांद की रूपहली लिखावट
और पुलक से खिल पड़ती है
गंगा की स्मृतियों की
कथा पढ़कर।
चांदनी चूमकर
आती है गंगा नदी को
और फिर-फिर चूमती है
सूरीनामी नदी को।
लहरें गाती हैं
नदी की वक्ष-गाथ
सागर में समाने का सुख
गहरी रात गए
नदी के आवेग में होती है
संगम की आतुरता
तट से निबर्ंध होकर
समा जाने की आकुलता।
सूरीनाम नदी की जल-देह में है
अटलांटिक महासागर का अंतरंग आवेग
तट को समेटता और समाता हुआ
पारामारिबो की धरती पर
लिखता है अपनी ही प्रणय-पाती।
सूरीनाम नदी के तट पर
प्रवासी भारतीय
जाता है सूयार्स्त के बाद
और सुनता है नदी की आवाज
मौन होकर
शायद लहिरयों में से छन आए
आजी की पुकार
आजा की गुहार
तट-माटी की देह में
खोजता है - आजी की गोद
और आजा की छाती
जिसे बचपन में
कभी लीपा था अपनी लार से
प्यार से भरकर
और पिया था -
आजी के चुंबन में से
आजादी की चाहत।
गहरी रात गए
सोई नदी की आंखों में
सौंप आता है
आजादी का सुख
अपनी आजी को बतलाने के लिए
आंसू पोंछी हथेली को
डुबोता है सूरीनाम नदी में
जैसे आजी के आंचल में
सौंपता हैं अपने आंसू
और नदी के बहाने
छूता है अपने पूवर्जों के