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सूर्य-वसंत / यतीन्द्र मिश्र
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सूर्य अगर फूल होता
फिर पंखुड़ी होती आग
इस तरह हर फूल का
होता प्रकाश
और हर प्रकाश का
अपना रंग
ऐसे में जब-जब
जीवन में आता वसंत
हमें लगता
ढेरों सूर्य खिले हैं रंग भरे
और नाउम्मीदी की दिशा भी
उम्मीद की आग से
धधक उठी है एकबारगी।