लो घण्टी बजी
और शुरू हुई 
श्मशान में 
तीन प्रेतों की 
सामुहिक
	शव-साधना
मूक हो गई है वह
शब्द लहरी
गूँगे हो गये हैं
सभी संबोधन
सूली पर लटकी है साँस
बस बाकी है 
सन्नाटे को चीरती 
सीत्कार
चीत्कारों के दाँव पेंच
बीच में है हवा
सिर्फ हवा
दूषित
	ज़हरीली
कुंठा की ग़ुँजलक में कैद
और नुची 
हिंसा के पँजों से 
कब तक पहनेंगे हम
यह नक़ाब
कब तक जीना पड़ेगा 
			तहख़ानों में 
कब तक टूटेगी मूर्च्छा 
उस अपनी-सी लगती 
			पहचान की
या है फिर 
सन्नाटा 
		नरभक्षी दैत्य-सा
जो निगल जाएगा
मुझे
	तुम्हें
		उसे
और रह जायेंगे हवा में
खूनी निशान 
हमदर्दों की हत्या के बाद
				1984