प्राण में धीरज धरो पर
ध्यान हो इतना
रज न हो जाए कहीं भी
मान हो इतना।
ध्यान हो इतना
सृजन का क्रम नहीं टूटे
मुँह लगा शातिर
हमारा श्रम नहीं लूटे
श्रम कहाँ लूटा गया है
भान हो इतना।
कामचोरों ने
चुराकर काम दुर्बल का
हर तरह गहरा
दिया है घाव घायल का
किस तरह मारा, उछाला
ज्ञान हो इतना।