सेवक सिपाही सदा उन रजपूतन के
दान युद्ध वीरता मेँ नेकु जे न मुरके ।
जस के करैया हैँ मही के महिपालन के
हिय के विशुद्ध हैँ सनेही साँचे उर के ।
ठाकुर कहत हम बैरी बेवकूफन के
जालिम दमाद हैँ अदेनिया ससुर के ।
चोजन के चोजी महा मौजिन के महाराज
हम कविराज हैँ पै चाकर चतुर के ॥
ठाकुर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।