भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सैर-सपाटा / आरसी प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
कलकत्ते से दम दम आए,
बाबू जी के हम-दम आए!
हम वर्षा में झम-झम आए,
बर्फी, पेड़े, चमचम लाए!
खाते-पीते पहुँचे पटना,
पूछो मत पटना की घटना!
पथ पर गुब्बारे का फटना,
ताँगे से बेलाग उलटना!
पटना से हम पहुँचे राँची,
राँची में मन-मीरा नाची!
सबने अपनी किस्मत जाँची,
देश-देश की पोथी बाँची!
राँची से आए हम टाटा,
सौ-सौ मन का लोहा काटा!
मिला नहीं जब चावल-आटा
भूल गए हम सैर-सपाटा!
-साभार: नंदन, जुलाई 1994, 32