भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सै‘र (1) !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
सै‘र एक घायल सुन्याड़
जकी रो अदीठ फळसो‘र बाड़
भेळ‘र बड़ग्यो मांय
हाकै रो सैंठो गोधो
सींगां में उळझग्यो आभो
पोठां स्यूं निपजगी भौम
खुरां हेटै चिंथजगी जिनगानी
सै‘र,
एक लोही झ्याण सुन्याड़ !