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सॉनेट (गोबर अब गणेश हो रहे) / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
गोबर अब गणेश हो रहे,शेष हो रहे
अवगुण उनके। कल तक के विघ्न-विनायक
आजकल सारे क्लेश धो रहे अभिजन के।
काले ग्रेनाइट पर तोंद तराशी जाती
डिम-डिम कर बजती उस पर गुल-थुल छाती।
छाती तोंद संभाले उपर सूंड झूलती
नहीं भूलती आगे रख्खी लड्डू भर थाली
ताली बजा रहे ताल में पंडित मावाली।
दूध पी रहे चम्मच से कंटर का कंटर
सुध-बुध खो देते दो दिन को सारे जन-गण्ा
मारें ऐसा मंतर। नेता अभिनेता सब
मिल जुलकर गाएं हरकिर्तन,नर्तन करें
बॉलीउडी बालाएँ, दरसाएं जादू जब
जोबन का,जल जाएँ इच्छाऍं भक से जन की।
1999