भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोई अखियाँ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
सोईं अँखियाँ:
तुम्हें खोजकर बाहर,
हारीं सखियाँ।
तिमिरवरण हुईं इसलिये
पलकों के द्वार दे दिये
अन्तर में अकपट
हैं बाहर पखियाँ।
प्रार्थना, प्रभाती जैसी,
खुलें तुम्हारे लिये वैसी,
भरें सरस दर्शन से
ये कमरखियाँ।