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सोई साध-सिरोमनि / दादू दयाल

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सोई साध-सिरोमनि, गोबिंद गुण गावै।
राम भजै बिषिया तजै, आपा न जनावै॥टेक॥

मिथ्या मुख बोलै नहीं पर-निंद्या नाहीं।
औगुण छोड़ै गुण गहै, मन हरिपद-माहीं॥१॥

नरबैरी सब आतमा, पर आतम जानै।
सुखदाई समता गहै, आपा नहिं आनै॥२॥

आपा पर अंतर नहीं, निरमल निज सारा।
सतबादी साचा कहै, लै लीन बिचारा॥३॥

निरभै भज न्यारा रहै, काहू लिपत न होई।
दादू सब संसारमें, ऐसा जन कोई॥४॥